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                                                   खतरों   का सामना करते हुए   वाइल्डलाइफ   में रूचि रखने वालों को वैसे तो जंगलों की ख़ाक   छानने   में बहुत मज़ा आता है , मगर कभी   कभी ऐसी खतरनाक घटनायें   हो जाती हैं जिनको याद करने मात्र से रोंगटे खड़े हो जाते हैं। कोलाहल करें या शांत रहें   वाकया   सन 2000 का है। हम चार मित्र कॉर्बेट नेशनल पार्क में थे। शाम के नज़ारों   का लुत्फ़ उठाने के लिये हमारी   जिप्सी   का ड्राइवर   बनाम गाइड हमें घने जंगल के पार ले गया। कॉर्बेट में कुछ तज़ुर्बेकार   ड्राइवर गाइड का लाइसेंस भी हासिल कर लेते हैं। डूबते हुए सूरज और चरते   हुए हिरनों के झुण्ड   व   राम गंगा के पानी में अठखेलियां करते हुए हाथियों की भरपूर फोटो खींचने के बाद जब रोशनी   कम   हो गई तो हमारे ड्राइवर ने   जिप्सी   वापस चलने के लिये मोड़ दी। लेकिन यह क्या ? जिप्सी तो घड़घड़ा के शांत हो गई। ड्राइवर ने उसे पुनः चालू करने की भरपूर कोशिश   की पर नाकामी ही हाथ लगी। जिप्सी वहां छोड़ कर पैदल वापस जाना ख़तरनाक भी था और जंगल में पैदल चलने पर प्रतिबन्ध   भी है। अतः   मजबूरी में यह तै   किया गया कि

फूलों की घाटी

  फूलों की घाटी (VALLEY OF FLOWERS) विश्व विख्यात फूलों की घाटी उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल की पहाड़ियों पर समुद्र तल से लगभग 12000 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। जिला चमोली स्थित इस घाटी की खोज ब्रिटिश पर्वतारोही फ्रैंक एस स्मिथ ने 1931 में इत्तेफाक से की थी, जब वे कामेट अभियान से लौट रहे थे। यहाँ पहुंचने के लिए हरिद्वार तक ट्रेन या सड़क मार्ग से पहुँच कर वहां से कार या बस द्वारा देव प्रयाग, श्री नगर (गढ़वाल), रूद्र प्रयाग और जोशीमठ होते हुए गोविन्द घाट तक पहुंच सकते हैं। यात्रा का उचित समय जुलाई, अगस्त या पूर्वार्ध सितम्बर माह है, जो पास में ही स्थित सिखों के पवित्र तीर्थ हेमकुंड साहब के दर्शन का समय भी है। हरिद्वार एवं ऋषिकेश में इस दिशा की यात्रा के लिए टैक्सी भी उपलब्ध रहती हैं। बस द्वारा यात्रा करने के लिए ऋषिकेश से बदरीनाथ धाम तक की नियमित बस सेवाएं उपलब्ध हैं। गोविन्द घाट बदरीनाथ से 44 कि० मी०पहले मुख्य मार्ग पर ही स्थित है। ऋषिकेश से गोविन्द घाट तक का सम्पूर्ण मार्ग प्राकृतिक सुंदरता से भरा पड़ा है। इठलाती बलखाती गंगा (जाते समय ऋषिकेश से देव प्रयाग तक) और अलकनंदा (देव प्रयाग से गोविन्द घाट